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अमरनाथ धाम भगवान शिव का एक ऐसा तीर्थ है, जिससे ना सिर्फ हिंदूओं की आस्था जुड़ी हुई है बल्कि मुसलमान भी इस तीर्थ में विश्वास रखते हैं। यह सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है बल्कि हिंदू और मुसलमानों को एक साथ जोड़ने का सूत्र भी है।

51 शक्तिपीठों में से एक

श्री अमरनाथ गुफा में स्थित पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां भगवती सती का कंठ भाग गिरा था। कश्मीर घाटी में स्थित पावन श्री अमरनाथ गुफा प्राकृतिक है। यह पावन गुफा लगभग 160 फुट लम्बी, 100 फुट चौड़ी और काफी ऊंची है। देवताओं की हजार वर्ष तक स्वर्ण पुष्प मोती और पट्टआ वस्त्रों से पूजा का जो फल मिलता है, वह श्री अमरनाथ की रसलिंग पूजा से एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है।

अमरनाथ धाम में देवाधिदेव महादेव को साक्षात विराजमान माना जाता है। महादेव प्रति वर्ष श्री अमरनाथ गुफा में अपने भक्तों को हिमशिवलिंग के रूप में दर्शन देते हैं। इस पवित्र गुफा में हिमशिवलिंग के साथ ही एक गणेश पीठ, एक पार्वती पीठ भी हिम से प्राकृतिक रूप में निर्मित होती है। श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने शिव धाम की प्राप्ति करवाने वाली परम पवित्र ‘अमर कथा’ भगवती पार्वती को सुनाई थी। हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित इस पवित्र गुफा की यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों के मन में यह सवाल उठता है कि इतनी ऊंचाई पर स्थित इस गुफा के स्थान तक सबसे पहले कौन पहुंचा होगा या इस गुफा में भगवान शिव के इस स्वरूप में दर्शन किसने किए होंगे। जानिए, श्री अमरनाथ गुफा की खोज के बारे में-

ऐसे हुई अमरनाथ गुफा की खोज

अमरनाथ गुफा की खोज का श्रेय एक गडरिये को दिया जाता है। जानकारों का मानना है कि अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता 16वीं शताब्दी में एक मुसलमान गड़रिए को पता चला था जिसके बाद इस गुफा के बारें में लोगों को पता चला , बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिया एक दिन भेड़ चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। बूटा स्वभाव से बहुत विनम्र और दयालु था। ऊपर पहाड़ पर उसकी भेंट एक साधु से हुई।

साधु ने बूटा को एक कोयले से भरी एक कांगड़ी ( हाथ सेकनेवाला पात्र ) दिया। बूटा ने जब घर आकर उस कांगड़ी को देखा तो उसमें कोयले की जगह सोना भरा हुआ था। तब वह उस साधु को धन्यवाद करने पहुंचा,परंतु वहां साधु की बजाय एक विशाल गुफा देखी। जब बूटा मलिक ने उस गुफा के अंदर जाकर देखा तो बर्फ से बना सफेद शिवलिंग चमक रहा था। उसने यह बात गांवालों को बताई और इस घटना के 3 साल बाद अमरनाथ की पहली यात्रा शुरू हुई। तभी से इस यात्रा का क्रम चल रहा है। बूटा मलिक के वंशज आज भी इस गुफा और शिवलिंग की देखरेख करते हैं। उसी दिन से यह स्थान एक तीर्थ बन गया। आज भी यात्रा पर आने वाले शिव भक्तों द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे का एक निश्चित हिस्सा मलिक परिवार के वंशजों को जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार

एक अन्य कथा के अनुसार कश्यप ऋषि ने कश्मीर घाटी के पानी का निष्कासन किया। कश्मीर घाटी उस समय एक बहुत बड़ी झील मानी जाती थी। जब लोगों को इसका ज्ञान हुआ तो वे इस शिव स्थल की तीर्थ यात्रा पर आने लगे। कश्यप ऋषि द्वारा अस्तित्व में आने के कारण से ही इस घाटी का नाम कच्छप घाटी पड़ा जो बाद में कश्मीर घाटी के नाम से प्रसिद्ध हुआ

अमरनाथ एक 150 फीट ऊंची और 90 फीट लंबी गुफा है। यह श्रीनगर से करीब 145 दूर है। इस गुफा में बर्फ की चार अलग-अलग आकृतियां हैं। सालों से इन्हें हिंदू देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यहां पर भगवान शिव बर्फ कि शिवलिंग के रूप में स्थापित हुए थे। इसके साथ ही यहां भगवान गणेश, देवी पार्वती और काल भैरव को भी पूजा जाता है। बर्फ की ये आकृतियां मई से अगस्त के बीच बनती हैं और उसके बाद स्वयं पिघल जाती हैं।

अमरनाथ गुफा में पार्वती जी को अमरकथा सुनाई

एक बार देवर्षि नारद कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के दर्शन हेतु पधारे। भगवान शंकर उस समय वन भ्रमण को गए थे और पार्वती जी वहां विराजमान थीं। पार्वती जी ने देवर्षि के आने का कारण पूछा। तब नारद ने कहा-देवी! भगवान शंकर, जो हम दोनों से बड़े हैं, के गले में मुंडमाला क्यों है? भगवान शंकर के वहां आने पर यही प्रश्र पार्वती जी ने उनसे किया। भगवान शंकर ने कहा-हे पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है, उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं।

पार्वती जी बोलीं- मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है परन्तु आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें। भगवान शंकर ने कहा यह सब अमरकथा के कारण है। इस पर पार्वती जी के हृदय में भी अमरत्व प्राप्त करने की भावना पैदा हो गई और वह भगवान से कथा सुनाने का आग्रह करने लगीं।

भगवान शंकर ने बहुत वर्षों तक टालने का प्रयत्न किया परन्तु अंतत: उन्हें अमरकथा सुनाने को बाध्य होना पड़ा। अमरकथा सुनाने के लिए समस्या यह थी कि कोई अन्य जीव उस कथा को न सुने।इसलिए शिव जी पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का त्याग करके इन पर्वत मालाओं में पहुंच गए और श्री अमरनाथ गुफा में पार्वती जी को अमरकथा सुनाई।

कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गईं, जिसका शिवजी को पता नहीं चला। भगवन शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे। उस समय दो सफेद कबूतर शिव जी से कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे। शिव जी को लगा कि माता पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं। इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली।

कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया, जो सो रही थीं। जब महादेव की दृष्टि कबूतरों पर पड़ी, तो वे क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बड़े।

इस पर कबूतरों ने भगवान शिव से कहा कि, ‘हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी। इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगे।

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