हिमाचली टोपी ( पहाड़ी टोपी ) देश भर में है हिमाचली लोगो की पहचान
जिस प्रकार भारत के अन्य हिस्सों में पगड़ी का इस्तेमाल किया जाता है वैसे ही, हिमाचली टोपी (Himachali Topi) विवाह, त्योहारों, धार्मिक कार्यों, मेलों और अन्य स्थानीय कार्यक्रमों के दौरान पहनी जाती है। परंपरागत रूप से, सर्द हवाओं से बचाने के लिए पहनी जाने वाली ये रंगीन टोपियां राज्य के सांस्कृतिक अस्तित्व में राज्य का प्रतीक बन गयी हैं। हिमाचली टोपी से बेहतर कोई भी स्मृति चिन्ह या उपहार नहीं हो सकता जो राज्य का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि राज्य में अन्य भी हस्तशिल्प भी हैं जैसे सुंदर कुल्लू शॉल, लेकिन इस पारंपरिक टोपी के आकर्षण की तुलना में कुछ भी नहीं है।
आज पहाड़ी टोपी हिमाचल के लोगों की पहचान बन चुकी है। हिमाचल में जब भी कोई शुभ कार्य (विवाह और अन्य उत्सव) होता है तो हिमाचली टोपी को एक महत्पूर्ण उपहार के रूप में जाना जाता है। हिमाचली टोपी को राज्य के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रंगों के साथ इस्तेमाल किया जाता है जैसे हरा और लाल रंग जो हिमाचल के गर्व से भी जुड़ा हुआ है। हिमाचल में टोपी शान का प्रतीक है जिसे लोग विवाह और अन्य उत्सवों के दौरान मेहमानों को भेंट कर उनका सम्मान करते हैं।
हिमाचली टोपी (Himachali Topi) आमतौर पर पुरुषों द्वारा पहनी जाती है लेकिन किन्नौर क्षेत्र की महिलाओं भी, जहाँ इसे वेदना के रूप में जाना जाता है हिमाचली टोपी को पहनती है। वैसे तो पूरे राज्य में, महिलाएं, आमतौर पर एक विशिष्ट रूप का ढाटु (एक हेडस्कार्फ़) पहनती हैं।
हिमाचली टोपी केवल एक टोपी नहीं, बल्कि है एक मुकुट
हिमाचली टोपी (Himachali Topi) को आमतौर पर ब्रोच, मोर पंख, गेंदा फूल, या हिमालय ब्रह्म कमल (भगवान ब्रह्मा के कमल) के सुंदर सूखे फूलों के साथ संवारा जाता है। परंपरागत रूप से इसे शानदार रूप से रंगीन मोनाल (इम्पेयान तीतर) पंखों से अलंकृत किया जाता था जब तक कि यह पक्षी एक लुप्तप्राय प्रजाति घोषित नहीं किया गया था।
चमकीले रंग की, ऊनी हिमाचली टोपी हिमाचल के लोगों के लिए गर्व का विषय है और यह सिर्फ एक सांस्कृतिक पहचान होने से परे है। इसके रंग आज राजनीतिक आत्मीयता के संदर्भ में देखे जाते हैं।
हिमाचली टोपी (पहाड़ी टोपी) का इतिहास
History of Himachali Topi (Pahari Topi)
टोपी हालांकि काफी हद तक शिमला, कुल्लू, किन्नौर और हिमाचल के अन्य उच्च क्षेत्रों में पहनी जाती है। ऐतिहासिक रूप से हिमाचली टोपी, किन्नौर से लेकर पूर्व की रियासत बुशहर राज्य के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी, जहां से फिर ये कुछ प्रवासियों के माध्यम से और हिमाचल के अन्य स्थानों जैसे की कुल्लू तक चली गई।