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मोहना – अपने भाई के लिए किये गये बलिदान कि कहानी

रियासतकालीन बिलासपुर की एक सत्य गाथा है “मोहना”

मोहना केहलूर रियासत के किसी गाँव का एक भोला भाला लड़का था उसका भाई तुलसी राजा के यहाँ नौकर था। तुलसी ने किसी का खून कर दिया। और मोहना को इस बात के लिए राजी कर लिया की परिवार की जिम्मेदारी उसके ऊपर है खेती बाड़ी भी वही देखता है इसलिए खून का इलज़ाम तुम अपने ऊपर ले लो। मैं राजा के यहाँ नौकर हूँ राजा से बात करके बाद में तुम्हे बचा लूंगा।

अपने सिर पर खून का इल्जाम ले कर बचाई भाई कि जान 

मोहना भाई की बातों में आ गया और खून का इलज़ाम अपने सर ले लिया। मोहना को राजा के सामने पेश किया गया। उस समय केहलूर यानी बिलासपुर रियासत का राज बिजई चन्द चन्देल के पास था। मोहन के भोलपन को भांपकर राजा को लगा की मोहना किसी की जान नहीं ले सकता इसने कत्ल नहीं किया है। राजा के बार बार सचाई पूछने पर भी जब मोहना ने जुबान नहीं खोली तब राजा ने मोहना को कुछ दिन का समय सोचने के लिए दिया।

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निश्चित दिन मोहना से जब पूछा गया तब भी मोहना ने सच नहीँ बताया। अंत में बहादुरपुर के किले में गर्मियों के लिए गए राजा बिजाई चंद चंदेल ने वहीँ से 1922 में मोहना को सरे आम साडू के मैदान में फान्सी देने का हुक्म दे दिया। फांसी से पिछली रात एक सिपाही के बार बार पूछने पर मोहना ने रहस्य बताया। जो बाद में रियासत में फैला तब तक मोहना फांसी पर लटक चूका था।

बिलासपुर के लोकगीतों में मोहना को बहुत जगह मिली और लोकगीतों में मोहना के बलिदान को गाया जाने लगा।

इस वीडयो में मोहना की इस कहानी को पहाड़ी पहाड़ी लोक गायक स्वर्गीय हेत राम कंवर जी ने अपनी आवाज दी है

करनैल राणा आदि लोकगायनकों ने भी इस कहानी को अपने गायन में जगह दी है।,हिमाचली गायक करनैल राणा कि आवाज में देखे मोहना कि इस कहानी को इस विडियो में :

Written By :Aashish Nadda
(लेखक बिलासपुर,हिमाचल प्रदेश  से है और  दिल्ली में एनर्जी पालिसी प्लानिंग में रिसर्च कर रहे हैं)
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मोहना भाई की बातों में आ गया और खून का इलज़ाम अपने सर ले लिया। मोहना को राजा के सामने पेश किया गया। उस समय केहलूर यानी बिलासपुर रियासत का राज बिजई चन्द चन्देल के पास था। मोहन के भोलपन को भांपकर राजा को लगा की मोहना किसी की जान नहीं ले सकता इसने कत्ल नहीं किया है। राजा के बार बार सचाई पूछने पर भी जब मोहना ने जुबान नहीं खोली तब राजा ने मोहना को कुछ दिन का समय सोचने के लिए दिया।

त दिन मोहना से जब पूछा गया तब भी मोहना ने सच नहीँ बताया। अंत में बहादुरपुर के किले में गर्मियों के लिए गए राजा बिजाई चंद चंदेल ने वहीँ से 1922 में मोहना को सरे आम साडू के मैदान में फान्सी देने का हुक्म दे दिया। फांसी से पिछली रात एक सिपाही के बार बार पूछने पर मोहना ने रहस्य बताया। जो बाद में रियासत में फैला तब तक मोहना फांसी पर लटक चूका था।

बिलासपुर के लोकगीतों में मोहना को बहुत जगह मिली और लोकगीतों में मोहना के बलिदान को गाया जाने लगा।

इस वीडयो में मोहना की इस कहानी को पहाड़ी पहाड़ी लोक गायक स्वर्गीय हेत राम कंवर जी ने अपनी आवाज दी है

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