सिकंदर यूनान का बहुत मशहूर राजा हुआ. उसने बहुत कम उम्र में ही दुनिया के एक बड़े हिस्से पर अपना साम्राज्य क़ायम कर लिया था.उसकी कामयाबियों की वजह से ही सिकंदर को हमेशा सिकंदर महान कहकर बुलाया जाता है.पर, क्या इस महान राजा का कोई वंशज अब भी होगा? अगर हां, तो वो कहां हैं?
इस सवाल का जवाब आप को हिंदुस्तान में मिल सकता है. जी हां, भारत में एक गांव ऐसा है जहां के बाशिंदे ख़ुद को सिकंदर का वंशज कहते हैं
इसके लिए आप को चलना होगा हिमाचल प्रदेश. हिमाचल प्रदेश की पार्वती घाटी, सैलानियों के बीच काफ़ी मशहूर है. यहां लोग विचित्र क़िस्म की पार्टियां करने आते हैं, जहां खुलकर हशीश का इस्तेमाल होता है.
ये हशीश आती है, हिमाचल प्रदेश के मलाणा गांव से. लेकिन आप जब नशाखोरों के धुएं के पार देखें, तो आप को अलग ही मलाणा गांव दिखाई देगा. जहां ऐतिहासिक क़िस्से हैं, रहस्य हैं और कई अनसुलझे सवाल हैं.
हिमालय की चोटियों के बीच स्थित मलाणा गांव चारों तरफ़ से गहरी खाइयों और बर्फ़ीले पहाड़ों से घिरा है. क़रीब 1700 लोगों की आबादी वाला ये गांव सैलानियों के बीच ख़ूब मशहूर है
मलाणा की हशीश मशहूर है. इसकी बड़ी ख़ूबी ये है कि स्थानीय लोग इसे हाथों से रगड़ कर तैयार करते हैं. वहीं, इसके नशे के शौक़ीन तो पूरी दुनिया में हैं.
मलाणा गांव की ख़ूबी यहां बिकने वाली हशीश ही नहीं है. इस गांव से जुड़े तमाम ऐसे क़िस्से भी हैं, जो लोगों को यहां खींच कर लाते हैं.
कहा जाता है कि जब सिकंदर ने हिंदुस्तान पर हमला किया था, तो उसके कुछ सैनिकों ने मलाणा गांव में पनाह ली थी. भारत में सिकंदर की जंग, पोरस से हुई थी. इस दौरान उसके कुछ घायल सैनिक छुपते-छुपाते, मलाणा गांव आ गए.
कहते हैं कि मलाणा के मौजूदा बाशिंदे, सिकंदर के उन्हीं सैनिकों के वंशज हैं. उस दौर की कई चीज़ें गांव में मिली भी हैं. कहा जाता है कि सिकंदर के ज़माने की एक तलवार गांव के मंदिर में रखी हुई है.
हालांकि अब तक इस गांव के लोगों का सिकंदर के सैनिकों से जेनेटिक गुणों का मिलान नहीं किया गया है. बहुत से स्थानीय लोगों को भी नहीं पता कि इस कहानी की बुनियाद क्या है.
मलाणा तक पहुंचना बेहद मुश्किल
लेकिन, सिकंदर के वंशज होने की कहानी को यहां के लोगों की कद-काठी से सही ठहराया जाता है. फिर उनकी ज़बान भी बाक़ी हिमाचली लोगों से अलहदा है. इससे मलाणी लोगों का रहस्य और गहरा हो जाता है.
मलाणी गांव के लोग कनाशी नाम की भाषा बोलते हैं. स्थानीय लोग इसे पवित्र ज़बान मानते हैं. इसे बाहरी लोगों को नहीं सिखाया जाता. ये भाषा दुनिया में कहीं और नहीं बोली जाती. हालांकि स्थानीय लोग हिंदी समझ जाते हैं. मगर, वो उसके जवाब में जो कहते हैं, वो बात कनाशी में होती है और समझ में नहीं आती.
कनाशी भाषा पर एक रिसर्च स्वीडन की उप्पासला यूनिवर्सिटी में हो रही है. ये रिसर्च भाषा की जानकार अंजू सक्सेना की अगुवाई में हो रही है. अंजू कहती हैं, ‘कनाशी तेज़ी से विलुप्त हो रही ज़बान है. ये चीनी-तिब्बती भाषा समूह की ज़बान है, जबकि आस-पास के गांवों में इंडो-आर्यन भाषाएं बोली जाती हैं. इनका कनाशी से कोई रिश्ता नहीं है. इस वजह से यहां के लोगों और इनकी भाषा को लेकर कई दिलचस्प सवाल उठते हैं.’
मलाणा तक पहुंचना भी बहुत मुश्किल है. सफ़र इतना कठिन है कि लगता है कि आप अनंत की सैर पर निकले हैं. मलाणा गांव के लिए कोई सड़क नहीं है. पहा़ड़ी पगडंडियों से होते हुए ही यहां तक पहुंचा जा सकता है. पार्वती घाटी की तलहटी में स्थित जरी गांव से यहां तक सीधी चढ़ाई है. जरी से मलाणा तक पहुंचने में क़रीब चार घंटे लग जाते हैं.
मलाणा गांव के लोगों के बाल हल्के भूरे हैं. उनकी नाक लंबी सी है. उनका रंग साफ़ गेहुआं है और कुछ लोगों की त्वचा तो सुनहरी है. मलाणा के लोग हल्के भूरे रंग के चोगे, टोपी और जूट के जूते पहनते हैं. उन्हें देख कर हिमाचली होने का नहीं बल्कि भूमध्य सागर के आस-पास के लोगों का एहसास होता है.
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मिसाल
मलाणा गांव की राजनैतिक-प्रशासनिक व्यवस्था ने दुनिया भर में लोगों को हैरान किया है. उन्हें समझ में नहीं आता कि आख़िर इस पिछड़े, दूर-दराज़ के अलग-थलग गांव में इतनी अच्छी प्रशासनिक व्यवस्था कैसे शुरू हुई.
मलाणा की लोकतांत्रिक व्यवस्था दुनिया की सबसे पुरानी जम्हूरियत मानी जाती है. ये यूनान की प्राचीन लोकतांत्रिक व्यवस्था से काफ़ी मिलती है. इसमें ऊपरी सदन है और निचला सदन है. लेकिन इस प्रशासनिक व्यवस्था में आध्यात्म का पुट भी है.
गांव में आख़िरी फ़ैसला ऊपरी सदन के हाथ में होता है. इसमें गांव के तीन अहम किरदार होते हैं. इनमें से एक किरदार जमलू देवता का प्रतिनिधि होता है.
जमलू के उपर किसी का हुक्म नहीं चलता ।


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