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अम्बर पिया गड़ोड़ेयां,

लोक खान पतरोड़ियां ।

कदी घीये पेठेयां कदी,

करेलियां खादे कोड़ियां ।

खाई खाई दिल अक्की जायें

खादे माह् दे तली पकोड़ियां ।

मरूदां खाई खेली खोड़ां,

कईयां चोरिया छलियां तोड़िया ।

घीये पेट्ठे लगियो भतेर ,

काकडियां लगियां थोड़ियां ।

काला महीना मुकी गिया,

लगी पईयां मिलणां जोड़ियां ।

गर्मियां हुण चली पईयां ,

सर्दियां हनं बत्ता दोड़ियां ।

नेडें आईयो ‘कुशल’ ‘सैर’,

‘’ रोटियां खानियों थोड़िया ।

Written by : Doctor Kushal Katoch,Dharamshala (HP)

Credit : Aashish Behal ( Bharat Ka Khajana )


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