एक बार दो बंदर खेल रहे थे तो खेलते खेलते उन्हें एक रोटी मिली. जिसके लिए दोनो लडने लगे.
वही पर सफेद गाउन नुमा कपडे पहने एक बिल्ली आई आरारारारारा करते हुए और कहा कि मैं बँटवारा करती हुँ रोटी का.
एक टुकडा बडा तोडा और एक छोटा तोडा और कहने लगी कि एक बडा हो गया ज्यादा तो मैं खा लेती हुँ जिस से दोनो के भाग में बराबर आ जाये .
पर ऐसे करते करते वो धूर्त बिल्ली पूरी की पूरी रोटी निगल गयी और दोनो बंदरो को आपस में लडकर फैसला करने कहा.
जो कमजोर था उसको हथियार देती लडने और जो सक्षम था उसे डर दिखाती कि वो तुम पर हमला करेगा इसलिए ये बडा हथियार लो रक्षण के लिए. इस तरह वो बिल्ली दोनो के मेहनत और खून पसीने की सारी कमाई लूटने लगी.
बंदरो के परिवार बढे तो बिल्ली और उसके गुंडो ने कमजोर बंदर को चरस दे कर हाथ में हथियार पकडा दिये और कर्जा दे दे कर अपना गुलाम बना के कमजोर बंदर के उपर अपना आदमी बिठा दिया और उसे गुलाम बना कर आतंकवाद फैलाता रहा. कमजोर बंदर को उसके मजहब का गलत मतलब सिखा कर उसके बच्चों को विज्ञान की जगह कट्टरता भर दी. उनमें नफरत का जहर पीढी दर पीढी भर कर उनपर बिल्ली राज करती रही. बंदुक बिल्ली चलाती पर गुलामो के कंधो पर रखकर जिस से गुलामो को आतंकवादी साबित कर के उनमें और नफरत का जहर बोया जा सके.
और दूसरी तरफ समझदार बंदर को बिल्ली आतंकवाद का डर बना कर सालों लूटती रही.
जैसे ही समझदार बंदर और गुलाम बंदर बातचीत करके समस्या सुलझाने जाते तो उनका खून पीने वाली बिल्ली दोनो जगह पर फैली अपनी मिडिया से ऐसा आतंक मचा देती कि दबाव में आ कर कुछ बात ना हो पाती. फिर भी अगर बात के लिए दोनो मान जाते तो बिल्ली जो कि अब खुँखार भेडिया बन चुकी थी , वो अपने गुलामो से गोलियाँ चलाने कहती जिस से बातचीत हो ही ना.
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बिल्ली के गुँडे आज भी हर जगह घुसे हुए है , हर पेड की हर डाली पर बैठे है.
वो नफरत का बीज बोते रहते है मिडिया के द्वारा, न्याय व्यवस्था के द्वारा , और इतना जहर बो दिया है कि अब दोनो बंदर एक दुसरे के त्यौहार , परिवार , रितिरिवाजो से नफरत करते है और बिल्ली के tradition बिल्ली के religion को मनाना गर्व मानते है.
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तुम्हें हर जगह बैठी बिल्लीयों को पकडना है जो तुम्हारा और आनेवाली पीढी का भविष्य खतम कर रहे है.
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जय हिंद
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