मण्डप में चारों ओर खुसफुसाने की आवाजें आ रही थीं। बारात आये इतना समय हो गया मगर दुल्हन का कहीं कुछ अता-पता ही नहीं था। प्रीति के पिता ने सिर झुका कर लड़के वालों से प्रीति के घर से भाग जाने की बात बताई। रात के ११ बज चुके थे, प्रीति को घर से भागे हुये चार घण्टे हो चुके थे। आठ बजे प्रीति को रेलवे स्टेशन पर मिलने वाला आकाश अभी भी दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। जिसके भरोसे प्रीति ने अपनी शादी से भागने जैसा कदम उठाया था उसने ही प्रीति का विश्वास तोड़ दिया था।
आँखों में आँसू और मायूसी लिये प्रीति दुल्हन के कपड़ों में स्टेशन पर एक कोने में खड़ी होकर सिसक रही थी। अचानक प्रीति के कन्धे पर एक हाथ ने दस्तक दी। प्रीति एकाएक घूमते हुए बोली-कितनी देर लगा दी आकाश तुमने। मगर सामने देखते ही प्रीति हैरान रह गयी। उसके सामने अमित था जिससे उसकी शादी होने वाली थी। प्रीति ने नजरें झुका लीं। अमित ने प्रीति के आँसू पोंछते हुये कहा क्या मुझ पर एक बार भरोसा कर पाओगी। एक नयी प्रेम कहानी की अच्छी शुरूआत हुई।।
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