भारत के साथ पुराने रिश्तों में बंधे अफगानिस्तान में अब तालिबानी राज की आहट सुनाई दे रही है. यहां राष्ट्रपति पैलेस पर तालिबान का कब्जा हो चुका हैअफगानिस्तान के कुल 34 प्रांत हैं.
वहीं अगर शहरों की बात करें तो पूरे देश में 12 प्रमुख बड़े शहर हैं, इनमें से जलालाबाद और काबुल तक अफगान का कब्जा है.
अफगानिस्तान के 34 प्रांत
बदख्शान, बदगीश, बागलान, बाल्क, बमयन, दायकुंडी, फराह, फरयब, गजनी, गोर, हेलमंद, हेरात, जोजान, काबुल,
कांदहार (कांधार), कपिसा, खोस्त , कोनार, कुन्दूज, लगमान, लोगर, नांगरहर, निमरूज, नूरेस्तान, ओरुज्गान, पक्तिया, पक्तिका, पंजशिर, परवान, समंगान, सरे पोल, तकार, वारदाक, जबोल
ये हैं अफगानिस्तान के बड़े शहर
सबसे पहले नाम आता है काबुल का जोकि अफगानिस्तान की राजधानी है. काबुल अफगानिस्तान का सबसे बड़ा शहर है जिसकी जनसंख्या 30.लाख है. यह शहर इस देश का आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र भी है. समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है काबुल सफेद खो पहाड़ी और काबुल नदी के बीच बसा …
अफगानिस्तान का दूसरा बड़ा शहर है कांधार जिसे कंदहार भी कहते हैं. ऐतिहासिक तौर पर कंधार टरनाक एवं अर्गंदाब नदियों के उपजाऊ मैदान के मध्य में स्थित है जहां नहरों से सिंचाई होती है लेकिन इसके उत्तर का भाग उजाड़ है. यहां के खेतों मे फल, गेहूं, जौ, दालें, मजीठ, हींग, तंबाकू की खेती होती है.यहां से पाकिस्तान के लिए ट्रेन जाती है. वहीं प्राचीन कंदहार नगर तीन मील में बसा है जिसके चारों तरफ 24 फुट चौड़ी, 10 फुट गहरी खाई एवं 27 फुट ऊंची दीवार.है. इस शहर के छह दरवाजे हैं जिनमें से दो पूरब, दो पश्चिम, एक उत्तर और एक दक्षिण में है. भारत से साल 1999 में अगवा आईसी 814 विमान को आतंकवादी कंधार लेकर गए थे.
” दो वजहें थी “
A) हथियारबंद नागरिक समाज ,
B) भौगोलिक स्थिति
किसी भी देश को पराजित करने के लिए उसे दो मोर्चो पर पराजित करना होता है :
1) देश की सेना को
2) देश के नागरिको को
कुछ देशो के पास सेना के अलावा एक अतिरिक्त रक्षा पंक्ति होती है। अमुक देश के नागरिको के पास भी हथियार होते है। यह बात ऐतिहासिक रूप से सिद्ध है कि जिस देश के नागरिको के पास भी हथियार होते है उस देश को कभी हराया नहीं जा सकता। तालिबान एक सेना नहीं है बल्कि यह नागरिको की एक बहुत बड़ी आबादी है जिनके पास हथियार है। इस तरह यह नागरिक सेना है। दूसरी वजह भौगोलिक है।
अफगानिस्तान में दुर्गम पहाड़ , कंदराएं और कबीले है। तालिबानी इन क्षेत्रो में शरण ले लेते है और दुश्मन देश की सेनाएं इनमे सुरक्षित रूप से घुस नहीं पाती। यदि वे खोजी बड़े सैन्य दस्ते के साथ खोजी अभियान चलाते है तो तालिबानी इन्हें छोड़ कर दूसरी जगह चले जाते है , और फिर मौका देखकर गुरिल्ला युद्ध करते रहते है। इस वजह से अफगानिस्तान को आज तक कोई भी देश लम्बे समय तक कब्जे में नहीं रख पाया।
अमेरिका एवं रूस भी इसके अपवाद नहीं है। 1990 में रूस को 10 साला संघर्ष के बाद अफगानिस्तान से सेना हटानी पड़ी थी। अमेरिका के साथ विएतनाम में भी यही हुआ। रूस ने विएतनाम के नागरिको को बड़े पैमाने पर हथियार भेजे जिसकी वजह से अमेरिका विएतनाम को काबू नहीं कर सका।
और उन्हें अपनी सेना हटानी पड़ी। स्वीटजरलेंड पर आक्रमण न करके हिटलर ने सही फैसला किया था। क्योंकि तब प्रत्येक स्विस के पास बन्दुक थी और पहाड़ी इलाका होने के कारण हिटलर के टैंक वहां बेकार साबित होते। अत: हिटलर ने सोवियत रूस पर तो हमला किया लेकिन स्विट्जरलेंड को छोड़ दिया।
हथियार विहीन नागरिक समाज सबसे आसान शिकार होता है। भारत पर आक्रमणकारी लगातार इसीलिए हमला करते रहे क्योंकि वे जानते थे भारत के नागरिक हथियार विहीन है , अत: सेना को हराने के बाद वे आसानी से टेक ओवर कर लेंगे। और यही हुआ भी। गजनी , गौरी , मुगलों से लेकर , ब्रिटिश तक सभी भारत पर हमला करके जीतते रहे ,
क्योंकि उन्हें सिर्फ सेना को ही हराना होता था। राजा के हारने के साथ ही नागरिक भी समर्पण कर देते थे। यही वजह रही कि सिर्फ 1 लाख ब्रिटिश 40 करोड़ भारतीयों को 200 साल तक गुलाम बना कर रख सके। क्योंकि ब्रिटिश के पास बंदूके थी , और भारत के नागरिक हथियार विहीन थे।
युद्ध निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है और युद्ध टाले नहीं जा सकते।
आजादी के बाद भारत अब तक 4 बार युद्ध का सामना कर चुका है , और आने वाले समय में भी हमें अमेरिका-चीन-पाकिस्तान आदि से युद्ध लड़ना पड़ेगा। यदि भारत को आक्रमण कारियों के हमले से हमेशा के लिए बचना है तो भारत में भी हथियार बंद नागरिक समाज की स्थापना करनी चाहिए, वर्ना युद्ध में हार जाने की तलवार हमारे सिर पर आगे भी लटकती रहेगी। हथियार बंद नागरिक समाज से प्राथमिक दौर में छुट पुट हिंसा बढ़ जाती है , किन्तु इससे देश सम्पूर्ण विनाश से बच जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि- हथियार बंद नागरिक समाज ही लोकतंत्र की जननी है।
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