आज सावन का पहला सोमवार है है ,कहते हैं शिव के अनेक रूप हैं। शिव की आराधना करने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। देवों के देव हैं महादेव. हर दुख को खुद पर लेकर भक्तों को भयमुक्त करने वाले है भोले. पहले तो उन्होंने समुद्र मंथन में निकले विष को पीकर देवताओं को बचाया और नीलकंठ कहलाए
भगवान शिव का एक महाकाल रूप में शिवलिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में है , इस शिवलिंग में मुर्दों की भस्म से महाकाल का रोजाना श्रृंगार किया जाता है
उज्जैन की प्रसिद्धि सदियों से एक पवित्र व धार्मिक नगर के रूप में रही है। लंबे समय तक यहाँ न्याय के राजा महाराजा विक्रमादित्य का शासन रहा। महाकवि कालिदास, बाणभट्ट आदि की कर्मस्थली भी यही नगर रहा।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है।हाँ हिन्दुओं का पवित्र उत्सव कुम्भ मेला 12 वर्षों में एक बार लगता हैl
उज्जयिनी, शिक्षा का एक प्राचीन स्थल भी था जहाँ गुरुकुलों में कला एवं विज्ञान तथा वेदों का ज्ञान दिया जाता था. भगवान् श्री कृष्ण ने अपने भ्राता बलराम तथा सखा सुदामा के साथ यहाँ के संदीपनी आश्रम गुरुकुल में अध्ययन किया था. यह हिन्दू समय-निर्धारण का केंद्र भी है. उत्तर में 23 डिग्री 11 मिनट तथा पूर्व में 73 डिग्री 45 मिनट पर स्थित होने के कारण हिन्दू खगोलीय ग्रन्थ के अनुसार मुख्य भूमध्य रेखा अथवा शुन्य देशांतर रेखा उज्जैन से गुजरती है, इसलिए समय की गणना उज्जैन में सूर्योदय के द्वारा की जाती है और तदनुसार, कैलेण्डर वर्ष के आरंभ ‘मकर संक्रांति’ तथा युग के प्रारंभ की गणना इससे की जाती है
धर्म ग्रथों के मुताबिक उज्जैन जीवन और मौत के चक्र को खत्म कर भक्तों को मोक्ष देता है और जहां के कण-कण में महाकाल यानि शिव का वास है
महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य आकर्षणों में भगवान महाकाल की भस्म आरती, नागचंद्रेश्वर मंदिर, भगवान महाकाल की शाही सवारी आदि है। प्रतिदिन अलसुबह होने वाली भगवान की भस्म आरती के लिए कई महीनों पहले से ही एडवांस बुकिंग की जाती है , अगर किसी मुर्दे की भस्म इस महाकाल मंदिर के श्रृंगार के लिए चयनित हो जाती है तो मृत व्यक्ति के परिजन उसे बहुत ही भाग्यवान मानते है,हालाँकि अब गोबर के कन्डो की भस्म को महाकालेश्वर पर लगाया जाता है
![Bhasam aarti](https://beingpahadi.com/wp-content/uploads/2017/07/Bhasam-aarti.jpg)
भक्तों के लिए भक्ति, आस्था और आराधना की वो मंजिल जहां सुबह शाम बजने वाली घंटों की ध्वनि निरंतर किसी चमत्कारी शक्ति का आभास करवाती है
उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थापित इस मंदिर में शिव अपने भैरव स्वरूप में विराजते हैं. यूं तो भगवान शिव का भैरव स्वरूप रौद्र और तमोगुण प्रधान रूप है. मगर कालभैरव अपने भक्त की करूण पुकार सुनकर उसकी मदद के लिए दौड़े चले आते हैं. काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है. मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को एक तश्तरी में उड़ेल कर भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते -देखते ही भक्तों की आंखों के सामने घटता है वो चमत्कार जिसे देखकर भी यकीन करना एक बार को मुश्किल हो जाता है. क्योंकि मदिरा से भरी हुई तश्तरी पलभर में खाली हो जाती है.
कैसे पहुंचें:
1 . सड़क मार्ग – इंदौर, सूरत, ग्वालियर, पुणे, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, उदयपुर
, नासिक मथुरा आदि शहरों से उज्जैन सड़क मार्ग द्वारा जुडा है.
2 . रेल मार्ग – अहमदाबाद, राजकोट, मुंबई, लखनऊ, देहरादून, दिल्ली, वाराणसी, चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद,जयपुर,हावड़ा आदि शहरों से उज्जैन रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है.
3 . वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा इंदौर (53 km ) है जहाँ से मुंबई, दिल्ली, ग्वालियर आदि
शहरों के लिए विमान सेवाएँ उपलब्ध हैं.
ठहरने के लिए धर्मशाला तथा अन्य जानकारी के लिए संपर्क किया जा सकता है
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