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वह केरल फोल्कलोर एकेडमी में पढ़ाती हैं और एक जंगल में आदिवासी बस्ती में पत्तों से बनी छत वाली एक छोटी सी झोपड़ी में रहती हैं. वह अपने इलाके से एक मात्र ऐसी आदिवासी महिला हैं,हालांकि उन्होंने केवल 8वीं तक ही शिक्षा हिस की हैं, लेकिन इसके बावजूद औषधि का ज्ञान हासिल करने के लिए उनकी कम पढ़ाई ने कोई बाधा उत्पन्न नहीं की। 

लक्ष्मीकुट्टी जंगलों के बीच रहने वाली आदिवासी महिला हैं. लेकिन उनका परिचय यहीं खत्म नहीं होता. वो सांप के काटे का इलाज करना जानती हैं और वो भी सौ फीसदी औषधीय तरीके से. मिलिए 75 साल की जंगल की दादी से

लक्ष्मीकुट्टी को साल 2018 के पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. लक्ष्मीकुट्टी सर्प दंश, जहरीले कीड़े के काटने का इलाज करती हैं. 75 साल की लक्ष्मीकुट्टी आज भी 500 के करीब हर्बल दवाएं अपनी याददाश्त से तैयार कर लेती हैं. लक्ष्मीकुट्टी सिर्फ हर्बल दवा ही नहीं बनाती बल्कि वो कविता लिखती हैं, दक्षिण भारत के इंस्टीट्यूट में नैचुरल मेडिसिन पर लेक्चर देती हैं, केरल के कल्लार में केरल फोल्कलोर एकेडमी में शिक्षिका भी हैं. लक्ष्मीकुट्टी को जड़ी-बूटी और पेड़ों का इस्तेमाल कर उसे औषधि के रूप में इस्तेमाल करने का गुण उनकी मां से मिला.

75 वर्षीय लक्ष्मी को जंगल की दादी मां भी कहते हैं. वो बताती हैं कि हर्बल औषधि से ट्रीटमेंट का ज्ञान उन्हें उनकी मां से मिला था. उनका दावा है कि वे 500 से ज्यादा हर्बल दवाइयां बनाने की तकनीक जानती हैं

केरल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट उनकी दवाइयों पर किताब तैयार करने वाली है. लक्ष्मी का सपना है कि वो आदिवासियों के लिए अपनी ही झोपड़ी में छोटा सा क्लीनिक खोलें.

बीच जंगल में रहने वाली लक्ष्मीकुट्टी के पास अब तक हजारों लोग पहाड़ों को पार कर इलाज कराने आ चुके हैं. कहते हैं कि लक्ष्मीकुट्टी के स्पर्श में ही प्राकृतिक असर है और मरीज को इस थेरेपी के बाद राहत मिलने लगती है. साल 1995 में जब उन्हें केरल सरकार ने नेचुरोपैथी अवॉर्ड से सम्मानित किया तो दुनिया को उनकी शक्ति के बारे में पता चला और वो जंगल के बाहर भी जाने जाने लगी. लक्ष्मीकुट्टी उन आदिवासी महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने स्कूल जाना उस वक्त शुरू किया जब इलाके में शिक्षा को लेकर उतनी जागरुकता नहीं थी, ये बात 1950 की है.

मां से मिली अनोखी विरासत

हालांकि उन्होंने 8वीं कक्षा तक ही शिक्षा हासिल की हैं, लेकिन कम पढ़ाई ज्ञान हासिल करने के लिए कोई बाधा नहीं बनी. लक्ष्मीकुट्टी को जानने वाले बताते हैं कि भले ही वह घने जंगल में रहती हों लेकिन वो किसी विज्ञानी की तरह प्रयोग करती हैं. जंगल के पेड़, फूल, फल और पेड़ की छालों का इस्तेमाल कर वो मकड़ी, सांप और रेबीज कुत्ते के काटे का इलाज करती हैं.

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पिछले 60 दशकों से लक्ष्मीकुट्टी ना केवल इलाज चाहने वालों की मदद कर रही हैं. बल्कि जो ज्ञान संजो रखा है उसे शोधकर्ताओं, छात्रों और वनस्पति विज्ञान में रुचि रखने वालों को बांटती हैं. लक्ष्मीकुट्टी की मां ने जो उन्हें बताया वो बड़े ही ध्यान से सीखती रही और उसे याद रखा. साल 2016 में उन्हें इंडियन बायोडाइवर्सिटी कांग्रेस ने हर्बल मेडिसिन के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित किया.

खास है लक्ष्मीकुट्टी का सम्मान

लक्ष्मीकुट्टी ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किए जाने के बाद कहा, “मुझे बहुत खुशी है कि सरकार ने मुझे इतना बड़ा सम्मान दिया, मैं जंगल में रहती हूं और पेड़, पौधों का इस्तेमाल कर औषधि बनाती हूं, आजकल हर तरफ जंगल और पेड़ नष्ट किए जा रहे हैं, मैं चाहती हूं कि सरकार इस ओर भी ध्यान दे, शोध की मदद से हम कई बीमारियों का इलाज इन्हीं पेड़-पौधों से निकाल सकते हैं. लेकिन हमें अपने जंगलों को बचाना होगा.”

इस साल भारत सरकार ने अलग-अलग क्षेत्र के 85 लोगों को पद्म सम्मान देने का एलान किया है. ये वो लोग हैं जो विभिन्न क्षेत्र, विशिष्ट सेवाओं और उल्लेखनीय काम के लिए सम्मान पा रहे हैं. खेल, कला, संगीत, साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान को सरकार ने पहचाना और सम्मानित किया है. पद्म पुरस्कार देने की प्रक्रिया को मोदी सरकार ने ज्यादा पारदर्शी और स्वच्छ बनाया है और पद्म पुरस्कार के लिए नामांकन और अनुशंसाएं अब ऑनलाइन करने की सुविधा हो गई है.

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