रिश्ते बनते हैं आपसी प्रेम-स्नेह एवं सामंजस्य से। सास और बहू का रिश्ता भी स्नेह, दुलार एवं आत्मीयता से ही टिकाऊ बनता है। समय के साथ इस रिश्ते में बदलाव भी आ रहा है। समय के साथ परिवार छोटे होते गए और वर्तमान सासुमाँएँ भी ज्यादा पढ़ी-लिखी व फैशनेबल होने के साथ नए विचारों में ढलती गईं।
फिर भी दूसरे परिवार से आई बेटी बहू बनकर ससुराल में प्रवेश करती है तो उसे जरूरत होती है सूझबूझ से सामंजस्य बैठाने की। सास के अंदर भी एक वात्सल्यमयी माँ का दिल होता है। जरूरत है, धैर्य से, उसके कार्यकलापों से, बातचीत से एवं व्यवहार से उन्हें पहचानने की।
बहू उनके अंदर छुपे दुलार और स्नेह को पहचाने और नजरअंदाज करे उनकी खामियों को। अगर बहू की सोच सकारात्मक हो तो यह बहुत सरल हो जाएगा। बानगी के तौर पर देखिए सास की किन बातों से आपके प्रति लाड़ झलकता है :-
देख बहू जरा सम्हाल कर चलना। आँगन गीला है। बाई अभी-अभी धोकर गई है।
सुबह के दस बज गए हैं। दूध दिया कि नहीं। और कितनी देर से पिएगी। फिर तो खाने का ही समय हो जाएगा।
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अरे काम तो चलता ही रहेगा। कुछ खा ले पहले। गर्मी कितनी तेज है आजकल। खाने का भी थोड़ा ध्यान रखा कर।
सब लोग तो वहाँ अच्छे सज-सँवरकर जाएँगे। पहले बता देती तो लॉकर से एक हल्का-फुल्का सेट ही ला देती।
मेरी वाली जरी की साड़ी पसंद हो तो निकाल दूँ क्या। पहन लेना कल शादी में। आजकल हमारे समय का वर्क फिर चलन में आ गया है।
मैं बनाकर दूँगी तुम्हें हाथ से शैम्पू। तुम्हारे बालों के लिए गुणकारी तो होगा ही, किफायती भी रहेगा। वरना तुम्हारे सारे बालों का नाश ही हो जाएगा।
अरे कुछ परेशान नहीं करेगा मुन्ना। मैं इसे सम्हाल लूँगी। वरना तुम लोगों को शांति से पिक्चर भी नहीं देखने देगा।
मायके जा रही हो तो कुछ फल और मिठाई भी साथ लेकर जाना। खाली हाथ मत चली जाना।
तुम्हारी दादी को मेरा प्रणाम जरूर कहना।
तुम्हारी मम्मी को वो तेल जरूर बता कर आना जिससे मैं अपने घुटनों में मालिश करती हूँ। उन्हें आराम आ जाएगा।
तुम्हारा आज व्रत है न, तो तुम जरा शांति से बैठ कर खा लो मैं गरमा-गरम फलाहार तैयार कर देती हूँ।
अभी तो तुम लोगों की खाने की उम्र है। बेकार में सब छोड़ देती हो। क्यों बेकार भूखी मरती हो (डायटिंग) इससे तो अच्छा है हल्का-फुल्का व्यायाम ही कर लिया करो।
तुम्हारा गला भी तो अच्छा है फिर क्यों नहीं सुनाया तुमने एक भजन। कभी-कभी चार लोगों के बीच गाया करो। हिम्मत खुलेगी।
अच्छा तो तुम्हें ऐसा कह रही थी वर्मा आन्टी। उनकी बहू कौन-सी रूप की रानी है। जो मेरी बहू को बोलती है।
सो जाओ अब बहुत रात हो गई है। बाकी काम कल हो जाएगा। वरना बीमार हो जाओगी।
किसी और से बात करते वक्त :-
ये अकेली भी कितना करेगी। बच्चों के काम भी तो होते हैं। अगर मैं थोड़ा काम कर देती हूँ तो हर्ज ही क्या है।
भला मुझे कहाँ चिंता रहती है घर की। घर तो ये अच्छे से सम्भाल लेती है। मुझे तो ये कोई काम करने ही नहीं देती।
नहीं-नहीं इसे तो फालतू खर्च करने की आदत ही नहीं है।
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